ई-वेस्ट क्या है?
इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट यानी ई-वेस्ट (e-waste) वह कचरा होता है, जो खराब हो चुके इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों से उत्पन्न हो सकता है.
समस्या ?
जिस तरह से इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग बड़ा है, उससे आज पूरे विश्व में यह ई-कचरा सबसे तेजी से बढ़ने वाला अपशिष्ट है. अगर भारत की बात की जाए तो हर वर्ष लगभग 3.2 मिलियन टन ई-कचरा उत्पन्न होता है. यह ई-वेस्ट मानव के स्वास्थ्य और हमारे पर्यावरण के लिए बहुत हानिकारक होता है.
राइट टू रिपेयर पोर्टल
सरकार के द्वारा ई-वेस्ट को कम करने के लिए “राइट टू रिपेयर पोर्टल” की शुरुआत की गई है. इस पोर्टल में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के जीवनकाल, रखरखाव, पुनः उपयोग, उन्नयन, और अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार करने की ऑप्शन होंगे, साथ ही इससे रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे, छोटी दुकानों और व्यवसाय को बढ़ावा मिलेगा, और यह थर्ड पार्टी मरम्मत को सक्षम बना कर “आत्मनिर्भर भारत” के माध्यम से रोजगार पैदा कर पाएगा.
राइट टू रिपेयर पोर्टल में 4 क्षेत्र हैं-
i. खेती के उपकरण
ii. मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिकी
iii. कंज्यूमर ड्यूरेबल
iv. ऑटोमोबाइल उपकरण
विश्व में इस तरह की कौन-कौन सी योजनाएं चल रही है?
- फ्रांस में 2020 में, “अपशिष्ट विरोधी कानून” को मंजूरी दी थी.
- यूनाइटेड किंगडम में भी एक कानून है.
- संयुक्त राज्य अमेरिका में “fair रिपेयर एक्ट“ है.
- ऑस्ट्रेलिया में राइट टू रिपेयर कानून नहीं है, पर वहां मरम्मत café है जो कि मुफ्त बैठक स्थल आयोजित करता है, और “मरम्मत कौशल (skill)” को साझा करता है.
भारत में ई वेस्ट के लिए आगे क्या?
भारत में मिशन LiFE की शुरुआत की गई, जो कि एक सार्वजनिक आंदोलन है, और इसमें कई तरह की एक्टिविटी की जा रही है. इसके साथ ही हाल ही में “इलेक्ट्रॉनिकी रिपेयर सर्विसेज आउटसोर्सिंग” ERSO पायलट पहल की शुरुआत की गई है, जिसके द्वारा भारत को एक विश्व का रिपेयर कैपिटल बनाने का लक्ष्य रखा गया है, इसका काम बेंगलुरु में हो रहा है, और इससे कई बड़ी कंपनियां जुड़ी हुई है. इससे देश में करीब 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक का राजस्व प्राप्त करने और लाखों रोजगार पैदा करने का अनुमान भी है.
कुछ वीडियो India’s first e-waste clinic
इन सभी के ऑब्जेक्टिव टाइप (या मल्टी – क्वेश्चन टाइप टेस्ट) के लिए इस लिंक को क्लिक करें, और टेस्ट देकर अपना स्कोर तुरंत जानिये – https://bit.ly/46rs31M
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